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🌳 श्रीकृष्ण, गोपियाँ एवं अगस्त ऋषि 🌳

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            एक बार गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा कि, ‘हे कृष्ण हमे यमुना पार अगस्त् ऋषि जी को भोजन कराने जाना है, और यमुना जी में बाढ़ आई हुई जल बहुत अधिक है | अब आप  बताओ हम कैसे जाएं? भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों से कहा कि, तुम यमुना जी के समीप जाओ और उनसे कहना कि, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी है तो हमें उस पार जाने के लिए मार्ग दो | गोपियाँ हंसने लगी कि, लो 16 हज़ार 108 पत्नियों वाले ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते है, सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमते थे, हमे छेड़ते थे..कभी हमारे वस्त्र चुराते थे कभी मटकिया फोड़ते थे…चलो ये भी बोल के देख लेते हैं | गोपियाँ यमुना जी के समीप जाकर कहती है, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण पूर्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दें, और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया | गोपियाँ तो सन्न रह गई ये क्या हुआ ? कृष्ण ब्रह्मचारी ? !!! अब गोपियां अगस्त् ऋषि को भोजन करवा कर वापस आने लगी तो उन्होंने अगस्त् ऋषि से कहा कि, अब हम घर कैसे जाएं ? यमुनाजी बीच में है | अगस्त ऋषि ने पूछा इस पार कैसे पहुंची..? गोपियों...

🌳 भोगे बिना छुटकारा नहीं (बोध कथा) 🌳

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है  अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्। शंख और लिखित दो सगे भाई थे। दोनो ने साथ मे गुरु और माता-पिता के द्वारा शिक्षा पाई थी, पूजनीय आचार्यों से प्रोत्साहन पाया था, मित्रों द्वारा सलाह पाई थी।  उन्होंने कई वर्षों के अध्ययन, चिंतन, अन्वेषण, मनन, के पश्चात जाना था, कि दुनिया में सबसे बड़ा काम जो मनुष्य के करने का है वह यह है कि, अपनी आत्मा का उद्धार करें।  वे दोनों भाई शंख और लिखित इस तत्व को भली प्रकार जान लेने के बाद, तपस्या करने लगे। पास पास ही दोनों के कुटीर थे। मधुर फलों के वृक्षों से वह स्थान और भी सुंदर और सुविधाजनक बन गया था। दोनों भाई अपनी-अपनी तपोभूमि में तप करते और यथा अवसर आपस में मिलते जुलते।  एक दिन लिखित भूखे थे। भाई के आश्रम में गए और वहां से कुछ फल तोड़ लाए। उन्हें खा ही रहे थे कि शंख वहां आ पहुंचे। उन्होंने पूछा- यह फल तुम कहां से लाए? लिखित ने उन्हें हंसकर उत्तर दिया- तुम्हारे आश्रम से।  शंख यह सुनकर बड़े दुखी हुए। फल  कोई बहुत मूल्यवान वस्तु नही थी। दोनों भाई आपस में फल लेते देते भी रहते थे, किंतु चोरी स...

🌳 माँ के प्रेम की पराकाष्ठा 🌳

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गाँव के सरकारी स्कूल में संस्कृत की क्लास चल रही थी। गुरूजी दिवाली की छुट्टियों का कार्य बता रहे थे। तभी शायद किसी शरारती विद्यार्थी के पटाखे से स्कूल के स्टोर रूम में पड़ी दरी और कपड़ो में आग लग गयी। देखते ही देखते आग ने भीषण रूप धारण कर लिया। वहां पड़ा सारा फर्निचर भी स्वाहा हो गया। सभी विद्यार्थी पास के घरो से, हेडपम्पों से जो बर्तन हाथ में आया उसी में पानी भर भर कर आग बुझाने लगे। आग शांत होने के काफी देर बाद स्टोर रूम में घुसे तो सभी विद्यार्थियों की दृष्टि स्टोर रूम की बालकनी (छज्जे) पर जल कर कोयला बने पक्षी की ओर गयी। पक्षी की मुद्रा देख कर स्पष्ट था कि पक्षी ने उड़ कर अपनी जान बचाने का प्रयास तक नही किया था और वह स्वेच्छा से आग में भस्म हो गया था। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ। एक विद्यार्थी ने उस जल कर कोयला बने पक्षी को धकेला तो उसके नीचे से तीन नवजात चूजे दिखाई दिए, जो सकुशल थे और चहक रहे थे। उन्हें आग से बचाने के लिए पक्षी ने अपने पंखों के नीचे छिपा लिया और अपनी जान देकर अपने चूजों को बचा लिया था। एक विद्यार्थी ने संस्कृत वाले गुरूजी से प्रश्न किया - गुरूजी, इस पक्षी को अपने बच्चो से...

🌳 ऊँची उड़ान 🌳

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गिद्धगिद्धों का एक झुण्ड खाने की तलाश में भटक रहा था। उड़ते – उड़ते वे एक टापू पे पहुँच गए। वो जगह उनके लिए स्वर्ग के समान थी। हर तरफ खाने के लिए मेंढक, मछलियाँ और समुद्री जीव मौजूद थे और इससे भी बड़ी बात ये थी कि वहां इन गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था और वे बिना किसी भय के वहां रह सकते थे। युवा गिद्ध  कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे, उनमे से एक बोला, ” वाह ! मजा आ गया, अब तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला, यहाँ तो बिना किसी मेहनत के ही हमें बैठे -बैठे खाने को मिल रहा है!” बाकी गिद्ध भी उसकी हाँ में हाँ मिला ख़ुशी से झूमने लगे। सबके दिन मौज -मस्ती में बीत रहे थे लेकिन झुण्ड का सबसे बूढ़ा गिद्ध इससे खुश नहीं था। एक दिन अपनी चिंता जाहिर करते हुए वो बोला, ” भाइयों, हम गिद्ध हैं, हमें हमारी ऊँची उड़ान और अचूक वार करने की ताकत के लिए जाना जाता है। पर जबसे हम यहाँ आये हैं हर कोई आराम तलब हो गया है …ऊँची उड़ान तो दूर ज्यादातर गिद्ध तो कई महीनो से उड़े तक नहीं हैं…और आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अब हम सब शिकार करना भी भूल रहे हैं … ये हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है …मैंने फ...

🌳 बद्रीनाथ धाम कथा 🌳

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एक बार श्री हरि (विष्णु) के मन में एक घोर तपस्या करने की इच्छा जाग्रत हुई। वे उचित जगह की तलाश में इधर उधर भटकने लगे। खोजते खोजते उन्हें एक जगह तप के लिए सबसे अच्छी लगी जो केदार भूमि के समीप नीलकंठ पर्वत के करीब थी। यह जगह उन्हें शांत, अनुकूल और अति प्रिय लगी। वे जानते थे की यह जगह शिव स्थली है अत: उनकी आज्ञा ली जाये और यह आज्ञा एक रोता हुआ बालक ले तो भोले बाबा तनिक भी माना नहीं कर सकते है। उन्होंने बालक के रूप में इस धरा पर अवतरण लिए और रोने लगे। उनकी यह दशा माँ पार्वती से देखी नही गयी और वे शिवजी के साथ उस बालक के समक्ष उपस्थित होकर उनके रोने का कारण पूछने लगे। बालक विष्णु ने बताया की उन्हें तप करना है और इसलिए उन्हें यह जगह चाहिए। भगवान शिव और पार्वती ने उन्हें वो जगह दे दी और बालक घोर तपस्या में लीन हो गया। तपस्या करते करते कई साल बीतने लगे और भारी हिमपात होने से बालक विष्णु बर्फ से पूरी तरह ढक चुके थे, पर उन्हें इस बात का कुछ भी पता नहीं था। बैकुंठ धाम से माँ लक्ष्मी से अपने पति की यह हालत देखी नही जा रही थी। उनका मन पीड़ा से दर्वित हो गया था। अपने पति की मुश्किलो को कम करने के लिए...

🍁 ईश्वर का न्याय 🍁

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कथा सागर में आज फिर एक ज्ञान वर्धक कहानी आपके सामने प्रस्तुत है भिक्षा ले कर लौटते हुए एक शिक्षार्थी ने मार्ग में मुर्गे और कबूतर की बातचीत सुनी।      कबूतर मुर्गे से बोला- “मेरा भी क्या भाग्य है? भोजन न मिले, तो मैं कंकर खा कर भी पेट भर लेता हूँ। कहीं भी सींक, घास आदि से घोंसला बना कर रह लेता हूँ। माया मोह भी नहीं, बच्चे बड़े होते ही उड़ जाते हैं। पता नहीं ईश्वर ने क्यों हमें इतना कमजोर बनाया है? जिसे देखो वह हमारा शिकार करने पर तुला रहता है। पकड़ कर पिंजरे में कैद कर लेता है। आकाश में रहने को जगह होती तो मैं कभी पृथ्वी पर कभी नहीं आता।"       मुर्गे ने भी जवाब दिया-“ मेरा भी यही दुर्भाग्य है। गंदगी में से भी दाने चुन चुन कर खा लेता हूँ। लोगों को जगाने के लिए रोज सवेरे सवेरे बेनागा बाँग देता हूँ। पता नहीं ईश्वर ने हमें भी क्यों इतना कमजोर बनाया है? जिसे देखो वह हमें, हमारे भाइयों से ही लड़ाता है। कैद कर लेता है। हलाल तक कर देता है। पंख दिये हैं, पर इतनी शक्ति दी होती कि आकाश में उड़ पाता तो मैं भी कभी भी पृथ्वी पर नहीं आता।“      शिष्य ने सोचा क...

🍁 अंधे की परख 🍁

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 एक राजा का दरबार लगा हुआ था,  क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये  राजा का दरवार खुले मे लगा हुआ था.  पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थी ..  महाराज के सिंहासन के सामने... एक शाही मेज थी... और उस पर कुछ कीमती चीजें रखी थीं.  पंडित लोग, मंत्री और दीवान आदि  सभी दरबार मे बैठे थे  और राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे.. ..  उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा.. प्रवेश मिल गया तो उसने कहा  “मेरे पास दो वस्तुएं हैं,  मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और  अपनी वस्तुओं को रखता हूँ पर कोई परख नही पाता सब हार जाते है  और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ”..  अब आपके नगर मे आया हूँ  राजा ने बुलाया और कहा “क्या वस्तु है”  तो उसने दोनो वस्तुएं.... उस कीमती मेज पर रख दीं..  वे दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान  आकार, समान रुप रंग, समान  प्रकाश सब कुछ नख-शिख समान था.. … ..  राजा ने कहा ये दोनो वस्तुएं तो एक हैं.  तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो  एक सी ही देती है लेकिन हैं भिन्न.  इनमें से एक है बहुत...

🍁 विश्वास 🍁

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 एक डाकू था जो साधु के भेष में रहता था। वह लूट का धन गरीबों में बाँटता था। एक दिन कुछ व्यापारियों का जुलूस उस डाकू के ठिकाने से गुज़र रहा था। सभी व्यापारियों को डाकू ने घेर लिया। डाकू की नज़रों से बचाकर एक व्यापारी रुपयों की थैली लेकर नज़दीकी तंबू में घुस गया। वहाँ उसने एक साधु को माला जपते देखा। व्यापारी ने वह थैली उस साधु को संभालने के लिए दे दी। साधु ने कहा कि तुम निश्चिन्त हो जाओ।  डाकुओं के जाने के बाद व्यापारी अपनी थैली लेने वापस तंबू में आया। उसके आश्चर्य का पार न था। वह साधु तो डाकुओं की टोली का सरदार था। लूट के रुपयों को वह दूसरे डाकुओं को बाँट रहा था। व्यापारी वहाँ से निराश होकर वापस जाने लगा मगर उस साधु ने व्यापारी को देख लिया।  उसने कहा; "रूको, तुमने जो रूपयों की थैली रखी थी वह ज्यों की त्यों ही है।" अपने रुपयों को सलामत देखकर व्यापारी खुश हो गया। डाकू का आभार मानकर वह बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद वहाँ बैठे अन्य डाकुओं ने सरदार से पूछा कि हाथ में आये धन को इस प्रकार क्यों जाने दिया। सरदार ने कहा;          "व्यापारी मुझे भगवान का भक्त...

🍁 मैं न होता, तो क्या होता 🍁

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  “अशोक वाटिका" में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा,तब हनुमान जी को लगा, कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सर काट लेना चाहिये! किन्तु, अगले ही क्षण, उन्हों ने देखा  मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया ! यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि  यदि मै न होता, तो सीता जी को कौन बचाता? बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता, तो क्या होता ?  परन्तु ये क्या हुआ? सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये,कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं! आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!" तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा! जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े, तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए त...

मौत सबको ले ही जायेगी..जियो खुल कर जियो

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  माइकल जैक्सन 150 साल जीना चाहता था! किसी सेे हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था! लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था ! अपनी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे ! जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे! उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था! स्वयं को व्यायाम करवाने के लिए उसने 15 लोगों को रखा हुआ था! माइकल जैकसन अश्वेत था, उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवाकर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था! अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया। गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया! और अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की! नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अपैल 1998) को जन्म दिया। वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था! हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था उसने अपने लिए अंगदान करने वाले डोनर भी तैयार कर रखे थे! जिन्हें वह खर्चा देता था, ताकि समय आने पर...

समय रूकता नहीं

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  सदा न संग सहेलियाँ, सदा न राजा देश। स दा न जुग में जीवणा, सदा न काला केश। सदा न फूलै केतकी, सदा न सावन होय। सदा न विपदा रह सके, सदा न सुख भी होय। सदा न मौज बसन्त री, सदा न ग्रीष्म भाण। सदा न जोवन थिर रहे, सदा न संपत माण। सदा न काहू की रही, गल प्रीतम की बांह। ढ़लते ढ़लते ढ़ल गई, तरवर की सी छाँह। समय एक जैसा किसी का और कभी भी नहीं होता। हम सभी के जीवन में समय का बड़ा महत्व है ! जिसने जीवन में समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया ! मनुष्य को समय के साथ चलना पड़ता जो समय के साथ नहीं चला वह पीछे रह जायगा !अच्छा व् बुरा समय हरेक के  जीवन में आता है जिसने बुरे समय पर विजय प्राप्त कर ली वह हमेशा यशस्वी होता है ! जिसने बुरे समय को अपने उपर हावी होने दिया वह व्यक्ति उपर नहीं उठ पायेगा ! समय बहुत चंचल है अच्छा हो या बुरा ज्यादा समय किसी के पास नहीं  टिकता  है ! अच्छा समय शीघ्र ही कट जाता है लेकिन  बुरे समय को काटना पड़ता है और यदि बुरे समय को काटने की शक्ति नहीं जुटा पाए तो वह मनुष्य को ही काट देता है अर्थात मनुष्य आत्महत्या भी कर बैठता है!   न किंचित्...

उपकार करो मगर किस पर

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 जंगल में शेर शेरनी शिकार के लिये दूर तक गये अपने बच्चों को अकेला छोडकर। जब देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे.  उसी समय एक बकरी आई उसे दया आई और उन बच्चों को दूध पिलाया फिर बच्चे मस्ती करने लगे. तभी शेर शेरनी आये. बकरी को देख लाल पीले होकर शेर हमला करता,  उससे पहले बच्चों ने कहा इसने हमें दूध पिलाकर बड़ा उपकार किया है नही तो हम मर जाते। अब शेर खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे, जाओ आजादी के साथ जंगल मे घूमो फिरो मौज करो। अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेडो के पत्ते खाती थी। यह दृश्य चील ने देखा तो हैरानी से बकरी को पूछा तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है। चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करती हूँ,  चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे निकलने का प्रयास करते पर कोशिश बेकार । चील ने उनको पकड पकड कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे तब चील ने अपने पंखों में छुपाया, बच्चों को बेहद राहत मिली. काफी समय बाद चील उडकर जाने लगी तो हैरान हो...

रामायण” क्या है?

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यह जानने के लिए आइये कथा सागर में ले चलते हैं और सुनाते हैं रामायण से सम्बन्धित एक छोटा सा प्रसंग..!  एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।  नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ? मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं । माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया | श्रुतकीर्ति जी आईं,  चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं! माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ?  क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं,  माँ की छाती से चिपटी,  गोद में सिमट गईं, बोलीं-  माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए । उफ !  कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया । तुरंत आवाज लगाई, सेवक दौड़े आए ।  आधी रात ही पालकी तैयार हुई,  आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,  माँ चली । आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ? अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं,  उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी...

हर पुत्र की इच्छा

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 हम जैसे मिडिल क्लास वाले लड़के बाप को गले नहीं लगाते..बाप के गालों को नहीं चूमते और न ही बाप की गोद में सर रख कर सुकून से सोते हैं...हमारा पिता और पुत्र का संबंध हमेशा मर्यादित होता है.... जब कभी बाहर होते है. या बाहर रहते है..तब अक्सर जब घर पर फोन करते हैं तो हमेशा बात मां से होती है..पीछे से कुछ दबे-दबे शब्दों में पिताजी भी कुछ कहते हैं, सवाल करते हैं या सलाह तो देते ही हैं.... और पिता जी की तबीयत से लेकर उनके सारे हालचाल भी माँ से ही पूछते है.. जैसे बचपन में कहीं चोट लगने पर मां से लिपट कर रोते थे...वैसे ही युवावस्था में लगी ठोकरों के कारण अपने पिता से लिपट कर रोना चाहते हैं...अपनी और अपने पिता की चिंताएं आपस साझा करना चाहते हैं..परन्तु ऐसा हम कभी नहीं कर पाते.... बाप और बेटे शुरुआत से ही एक दूरी में रहते हैं, दूरी अदब की, लिहाज की, संस्कार की या फिर जनरेशन गैप की कह लो... हर बेटे का मन करता है कि वो इन दूरियों को लांघता हुआ जाए और अपने बाप को गले लगा कर बाप से कहे की हम तुमसे बेइंतहा और बेशुमार प्यार करते है... 😔🙂 उनके गले लगना आज भी पहली इच्छा है उनके साथ खड़े होकर फोटो खिं...

लीला गिरधर की

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नमस्कार मित्रों इतिहास की कोख से फिर एक मनोहर पौराणिक कथा आप सभी को सुनाने आया हूं  कथा इस प्रकार है तो कि नरकासुर के वध के लिए गए श्रीकृष्ण ने कैसे माया रची इस चित्र को देखिए युद्ध का चित्रण बड़े सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है।  नरकासुर के छोड़े अस्त्र को भेदकर दूसरा वार करने के लिए तैयार सत्यभामा के भावों को देखकर लगता है यह वार निर्णायक होगा। सत्यभामा दिखने में जितनी सुंदर है युद्धकला में उतनी ही निपुण भी है।  और जरा श्रीकृष्ण को तो देखिए, नीचे गरुड़ पर बैठे है। बाण छोड़ने के बाद झटका लगने से सत्यभामा का संतुलन न बिगड़े इसलिए अपने पैर से सत्यभामा का पिछला पैर लगा रखा है।  श्रीकृष्ण के हाथ में विश्व का सबसे अचूक मारक अस्त्र सुदर्शन चक्र है। किंतु जब पत्नी युद्ध कर रही है, कृष्ण स्वयं आड़ लेकर बैठे है और पत्नी के युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण बलिहारी है, उसे कौतुक से देख रहे है।  सनातन के इतर विश्व के किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा में नारीवाद के ऐसे मुक्त विचार का उदाहरण नहीं मिलता जहाँ स्त्री पुरुष स्वतंत्र भी है और परस्पर पूरक भी! जहाँ नारी व्यक्तित्व भी है,...
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  चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं । ************ जब चाँद का धीरज छूट गया । वह रघुनन्दन से रूठ गया । बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है । स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है । तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है । हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है । सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है । चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है । जिस वक़्त याद में सीता की , तुम चुपके - चुपके रोते थे । उस वक़्त तुम्हारे संग में बस , हम ही जागते होते थे । संजीवनी लाऊंगा , लखन को बचाऊंगा ,. हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त मगर अपनी चांदनी बिखरा कर, मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त । तुमने हनुमान को गले से लगाया । मगर हमारा कहीं नाम भी न आया । रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था । तुम्हारी व...

ईश्वर सब देखता है "आप कैमरे की नजर में है"

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जीवन के अनजान रास्तों पर कब कहां कौन कैसे मिल जाए ये तो केवल भगवान ही जानता है मगर क्या हो अगर भगवान खुद ही साक्षात मिल जाये। तुलसीदास जी का एक दोहा याद आ जाता है :- तुलसी या संसार में, सबसे मिलिए धाय, न जाने किस रूप में, नारायण मिल जायें। एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है । मैंने कहा, "जी कहिए.." तो उसने कहा, अच्छा जी, आप तो  रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे, मैंने  कहा "माफ कीजिये, भाई साहब ! मैंने पहचाना नहीं, आपको..." तो वह कहने लगे, "भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया है... अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र मे बसे हो पर नज़र नही आते.. लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।" मैंने चिढ़ते हुए कहा, ये क्या मज़ाक है?" "अरे मज़ाक नहीं है, सच है। सिर्फ़ तुम्हे ही नज़र आऊंगा। तुम्हारे सिवा कोई देख- सुन नही पायेगा, मुझे।" कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी.. "अकेला ख़ड़ा- खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ, चाय तैयार है , चल...

राम भरत भातृ प्रेम

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  रामायण कथा का एक अंश, जिससे हमे सीख मिलती है "एहसास" की... श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत पथरीली और कंटीली थी ! की यकायक श्री राम के चरणों मे कांटा चुभ गया ! श्रीराम रूष्ट या क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे ! बोले- "माँ, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी ?" धरती बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !" प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप नरम हो जाना ! कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना ! मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे आघात मत करना" श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई ! पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ? जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ? फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी व्याकुलता क्यों ?" श्री राम बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं ! भरत को यदि का...

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं

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   हम भारत में रहकर अपनी भारतीयता पर गर्व नहीं करते स्वयं को हिन्दू कहने से डरते हैं जबकि पूरी दुनिया ने भारत को हिन्दू राष्ट्र माना है भारत की संस्कृति को विश्व की सबसे महान संस्कृति माना है। विदेशों में नजरिए में भारत विश्वगुरू है मगर हम यह कहने और मानने में झिझक महसूस करते हैं। आइये आपको कुछ जानकारी देता हूं  :- वियतनाम विश्व का एक छोटा सा देश है जिसने अमेरिका जैसे बड़े बलशाली देश को झुका दिया। लगभग बीस वर्षों तक चले युद्ध में अमेरिका पराजित हुआ था। अमेरिका पर विजय के बाद वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक पत्रकार ने एक सवाल पूछा...  जाहिर सी बात है कि सवाल यही होगा कि आप युद्ध कैसे जीते या अमेरिका को कैसे झुका दिया? पर उस प्रश्न का दिए गए उत्तर को सुनकर आप हैरान रह जायेंगे और आपका सीना भी गर्व से भर जायेगा।  दिया गया उत्तर पढ़िये-  सभी देशों में सबसे शक्ति शाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने एक महान व् श्रेष्ठ भारतीय राजा का चरित्र पढ़ा और उस जीवनी से मिली प्रेरणा व युद्धनीति का प्रयोग कर हमने सरलता से विजय प्राप्त की।  आगे पत्रकार ने पूछा: "कौन थे वो...