Posts

मौत सबको ले ही जायेगी..जियो खुल कर जियो

Image
  माइकल जैक्सन 150 साल जीना चाहता था! किसी सेे हाथ मिलाने से पहले दस्ताने पहनता था! लोगों के बीच में जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाता था ! अपनी देखरेख करने के लिए उसने अपने घर पर 12 डॉक्टर्स नियुक्त किए हुए थे ! जो उसके सर के बाल से लेकर पांव के नाखून तक की जांच प्रतिदिन किया करते थे! उसका खाना लैबोरेट्री में चेक होने के बाद उसे खिलाया जाता था! स्वयं को व्यायाम करवाने के लिए उसने 15 लोगों को रखा हुआ था! माइकल जैकसन अश्वेत था, उसने 1987 में प्लास्टिक सर्जरी करवाकर अपनी त्वचा को गोरा बनवा लिया था! अपने काले मां-बाप और काले दोस्तों को भी छोड़ दिया। गोरा होने के बाद उसने गोरे मां-बाप को किराए पर लिया! और अपने दोस्त भी गोरे बनाए शादी भी गोरी औरतों के साथ की! नवम्बर 15 को माइकल ने अपनी नर्स डेबी रो से विवाह किया, जिसने प्रिंस माइकल जैक्सन जूनियर (1997) तथा पेरिस माइकल केथरीन (3 अपैल 1998) को जन्म दिया। वो डेढ़ सौ साल तक जीने के लक्ष्य को लेकर चल रहा था! हमेशा ऑक्सीजन वाले बेड पर सोता था उसने अपने लिए अंगदान करने वाले डोनर भी तैयार कर रखे थे! जिन्हें वह खर्चा देता था, ताकि समय आने पर...

समय रूकता नहीं

Image
  सदा न संग सहेलियाँ, सदा न राजा देश। स दा न जुग में जीवणा, सदा न काला केश। सदा न फूलै केतकी, सदा न सावन होय। सदा न विपदा रह सके, सदा न सुख भी होय। सदा न मौज बसन्त री, सदा न ग्रीष्म भाण। सदा न जोवन थिर रहे, सदा न संपत माण। सदा न काहू की रही, गल प्रीतम की बांह। ढ़लते ढ़लते ढ़ल गई, तरवर की सी छाँह। समय एक जैसा किसी का और कभी भी नहीं होता। हम सभी के जीवन में समय का बड़ा महत्व है ! जिसने जीवन में समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया ! मनुष्य को समय के साथ चलना पड़ता जो समय के साथ नहीं चला वह पीछे रह जायगा !अच्छा व् बुरा समय हरेक के  जीवन में आता है जिसने बुरे समय पर विजय प्राप्त कर ली वह हमेशा यशस्वी होता है ! जिसने बुरे समय को अपने उपर हावी होने दिया वह व्यक्ति उपर नहीं उठ पायेगा ! समय बहुत चंचल है अच्छा हो या बुरा ज्यादा समय किसी के पास नहीं  टिकता  है ! अच्छा समय शीघ्र ही कट जाता है लेकिन  बुरे समय को काटना पड़ता है और यदि बुरे समय को काटने की शक्ति नहीं जुटा पाए तो वह मनुष्य को ही काट देता है अर्थात मनुष्य आत्महत्या भी कर बैठता है!   न किंचित्...

उपकार करो मगर किस पर

Image
 जंगल में शेर शेरनी शिकार के लिये दूर तक गये अपने बच्चों को अकेला छोडकर। जब देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे.  उसी समय एक बकरी आई उसे दया आई और उन बच्चों को दूध पिलाया फिर बच्चे मस्ती करने लगे. तभी शेर शेरनी आये. बकरी को देख लाल पीले होकर शेर हमला करता,  उससे पहले बच्चों ने कहा इसने हमें दूध पिलाकर बड़ा उपकार किया है नही तो हम मर जाते। अब शेर खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे, जाओ आजादी के साथ जंगल मे घूमो फिरो मौज करो। अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेडो के पत्ते खाती थी। यह दृश्य चील ने देखा तो हैरानी से बकरी को पूछा तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है। चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करती हूँ,  चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे निकलने का प्रयास करते पर कोशिश बेकार । चील ने उनको पकड पकड कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे तब चील ने अपने पंखों में छुपाया, बच्चों को बेहद राहत मिली. काफी समय बाद चील उडकर जाने लगी तो हैरान हो...

रामायण” क्या है?

Image
यह जानने के लिए आइये कथा सागर में ले चलते हैं और सुनाते हैं रामायण से सम्बन्धित एक छोटा सा प्रसंग..!  एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।  नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ? मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं । माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया | श्रुतकीर्ति जी आईं,  चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं! माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ?  क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं,  माँ की छाती से चिपटी,  गोद में सिमट गईं, बोलीं-  माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए । उफ !  कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया । तुरंत आवाज लगाई, सेवक दौड़े आए ।  आधी रात ही पालकी तैयार हुई,  आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,  माँ चली । आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ? अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं,  उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी...

हर पुत्र की इच्छा

Image
 हम जैसे मिडिल क्लास वाले लड़के बाप को गले नहीं लगाते..बाप के गालों को नहीं चूमते और न ही बाप की गोद में सर रख कर सुकून से सोते हैं...हमारा पिता और पुत्र का संबंध हमेशा मर्यादित होता है.... जब कभी बाहर होते है. या बाहर रहते है..तब अक्सर जब घर पर फोन करते हैं तो हमेशा बात मां से होती है..पीछे से कुछ दबे-दबे शब्दों में पिताजी भी कुछ कहते हैं, सवाल करते हैं या सलाह तो देते ही हैं.... और पिता जी की तबीयत से लेकर उनके सारे हालचाल भी माँ से ही पूछते है.. जैसे बचपन में कहीं चोट लगने पर मां से लिपट कर रोते थे...वैसे ही युवावस्था में लगी ठोकरों के कारण अपने पिता से लिपट कर रोना चाहते हैं...अपनी और अपने पिता की चिंताएं आपस साझा करना चाहते हैं..परन्तु ऐसा हम कभी नहीं कर पाते.... बाप और बेटे शुरुआत से ही एक दूरी में रहते हैं, दूरी अदब की, लिहाज की, संस्कार की या फिर जनरेशन गैप की कह लो... हर बेटे का मन करता है कि वो इन दूरियों को लांघता हुआ जाए और अपने बाप को गले लगा कर बाप से कहे की हम तुमसे बेइंतहा और बेशुमार प्यार करते है... 😔🙂 उनके गले लगना आज भी पहली इच्छा है उनके साथ खड़े होकर फोटो खिं...

लीला गिरधर की

Image
नमस्कार मित्रों इतिहास की कोख से फिर एक मनोहर पौराणिक कथा आप सभी को सुनाने आया हूं  कथा इस प्रकार है तो कि नरकासुर के वध के लिए गए श्रीकृष्ण ने कैसे माया रची इस चित्र को देखिए युद्ध का चित्रण बड़े सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया है।  नरकासुर के छोड़े अस्त्र को भेदकर दूसरा वार करने के लिए तैयार सत्यभामा के भावों को देखकर लगता है यह वार निर्णायक होगा। सत्यभामा दिखने में जितनी सुंदर है युद्धकला में उतनी ही निपुण भी है।  और जरा श्रीकृष्ण को तो देखिए, नीचे गरुड़ पर बैठे है। बाण छोड़ने के बाद झटका लगने से सत्यभामा का संतुलन न बिगड़े इसलिए अपने पैर से सत्यभामा का पिछला पैर लगा रखा है।  श्रीकृष्ण के हाथ में विश्व का सबसे अचूक मारक अस्त्र सुदर्शन चक्र है। किंतु जब पत्नी युद्ध कर रही है, कृष्ण स्वयं आड़ लेकर बैठे है और पत्नी के युद्ध कौशल को देखकर श्रीकृष्ण बलिहारी है, उसे कौतुक से देख रहे है।  सनातन के इतर विश्व के किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा में नारीवाद के ऐसे मुक्त विचार का उदाहरण नहीं मिलता जहाँ स्त्री पुरुष स्वतंत्र भी है और परस्पर पूरक भी! जहाँ नारी व्यक्तित्व भी है,...
Image
  चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं । ************ जब चाँद का धीरज छूट गया । वह रघुनन्दन से रूठ गया । बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है । स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है । तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है । हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है । सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है । चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है । जिस वक़्त याद में सीता की , तुम चुपके - चुपके रोते थे । उस वक़्त तुम्हारे संग में बस , हम ही जागते होते थे । संजीवनी लाऊंगा , लखन को बचाऊंगा ,. हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त मगर अपनी चांदनी बिखरा कर, मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त । तुमने हनुमान को गले से लगाया । मगर हमारा कहीं नाम भी न आया । रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था । तुम्हारी व...