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गर्व से कहो हम हिन्दू हैं

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   हम भारत में रहकर अपनी भारतीयता पर गर्व नहीं करते स्वयं को हिन्दू कहने से डरते हैं जबकि पूरी दुनिया ने भारत को हिन्दू राष्ट्र माना है भारत की संस्कृति को विश्व की सबसे महान संस्कृति माना है। विदेशों में नजरिए में भारत विश्वगुरू है मगर हम यह कहने और मानने में झिझक महसूस करते हैं। आइये आपको कुछ जानकारी देता हूं  :- वियतनाम विश्व का एक छोटा सा देश है जिसने अमेरिका जैसे बड़े बलशाली देश को झुका दिया। लगभग बीस वर्षों तक चले युद्ध में अमेरिका पराजित हुआ था। अमेरिका पर विजय के बाद वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक पत्रकार ने एक सवाल पूछा...  जाहिर सी बात है कि सवाल यही होगा कि आप युद्ध कैसे जीते या अमेरिका को कैसे झुका दिया? पर उस प्रश्न का दिए गए उत्तर को सुनकर आप हैरान रह जायेंगे और आपका सीना भी गर्व से भर जायेगा।  दिया गया उत्तर पढ़िये-  सभी देशों में सबसे शक्ति शाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने एक महान व् श्रेष्ठ भारतीय राजा का चरित्र पढ़ा और उस जीवनी से मिली प्रेरणा व युद्धनीति का प्रयोग कर हमने सरलता से विजय प्राप्त की।  आगे पत्रकार ने पूछा: "कौन थे वो महान राजा ?" मित्रों, ज

दूरदृष्टी - सोच का दायरा

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  मनुष्य कई बार अपने निर्णयों और भूलों का आंकलन करता है तो वो इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs. 3000 की घड़ी पहनूं या Rs. 30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी। मेरे पास Rs. 3000 का बैग हो या Rs. 30000 का, इसके अंदर के सामान में कोई परिवर्तन नहीं होंगा। मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा। आख़िर में मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा। इसीलिए, अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें, उसकी कीमत को नहीं। फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था - ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग लोग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू, ता

दौड़ तो वाजिब है

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विषय का उद्देश्य शब्दों से नहीं भावों से लगाइयेगा आप समझ जायेंगे ..  विज्ञान कहता हैं कि एक नवयुवक स्वस्थ पुरुष यदि सम्भोग करता हैं तो, उस समय जितने परिमाण में वीर्य निर्गत होता है उसमें चालीस से नब्बे करोड़ शुक्राणु होतें हैं। यदि इन्हें स्थान  मिलता, तो लगभग इतने ही संख्या में बच्चे जन्म ले लेते !  वीर्य निकलते ही ये अस्सी निब्बे करोड़ शुक्राणु पागलों की तरह  गर्भाशय की ओर दौड़ पड़ते है...भागते भागते लगभग तीन सौ से पाँच सौ शुक्राणु पहुँच पाता हैं उस स्थान तक। बाकी सभी भागने के कारण थक जाते है बीमार पड़ जाते है और मर जातें हैं। और यह जो जितने डिम्बाणु तक पहुंच पाया, उनमे सें केवल मात्र एक महाशक्तिशाली पराक्रमी वीर शुक्राणु ही डिम्बाणु को फर्टिलाइज करता है यानी कि अपना आसन ग्रहण करता हैं। और यही परम वीर शक्तिशाली शुक्राणु ही आप हो, मैं हूँ , हम सब हैं !! कभी सोचा है इस महान घमासान के विषय में ? इस महान युद्ध के विषय में ?  आप उस समय भाग रहे थे...तब जब आपकी आँखें नहीं थी, हाथ पैर सर दिमाग कुछ भी नही था...फिर भी आप विजय हुए थे !! आप तब दौड़े थे जब आप के पास कोई सर्टिफिकेट नही था। किसी नामी दाम

भक्त भी भगवान को गिरने से बचाता है

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।। भक्तों को प्रणाण ।। भक्ति और प्रेम की पराकाष्ठा पर आधारित है आज का प्रसंग। क्षीर सागर में भगवान बिष्णु शेष शैय्या पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रही हैं। बिष्णुजी के एक पैर  का अंगूठा शैय्या के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं।  क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह बिचार कर कि मैं यदि भगवान बिष्णु के अंगूठे को अपनी जिह्वा से स्पर्श कर लूं तो मेरा मोक्ष हो जायेगा, यह सोच कर उनकी ओर बढ़ा। उसे भगवान बिष्णु की ओर आते हुये शेषनाग ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुंफकारा, फुंफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया।  कुछ समय पश्चात् जब शेषनाग जी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया। इस बार लक्ष्मीदेवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया। इस प्रकार उस कछुवे ने अनेकों प्रयास किये पर शेष नाग और लक्ष्मी माता के कारण उसे  सफलता नहीं मिली। यहां तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सतयुग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया। इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा। अप

सतगुरु,मैला कपड़ा और जीवात्मा

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ज्ञान गंगा सागर में प्रस्तुत है एक नई ज्ञान कथा:- एक बच्चा जब 13 साल का हुआ तो उसके पिता ने उसे एक पुराना कपड़ा देकर उसकी कीमत पूछी। बच्चा बोला 100 रु।  तो पिता ने कहा कि इसे बेचकर दो सौ रु लेकर आओ। बच्चे ने उस कपड़े को अच्छे से साफ़ कर धोया और अच्छे से उस कपड़े को फोल्ड लगाकर रख दिया। अगले दिन उसे लेकर वह रेलवे स्टेशन गया, जहां कई घंटों की मेहनत के बाद वह कपड़ा दो सौ रु में बिका। कुछ दिन बाद उसके पिता ने उसे वैसा ही दूसरा कपड़ा दिया और उसे 500 रु में बेचने को कहा। इस बार बच्चे ने अपने एक पेंटर दोस्त की मदद से उस कपड़े पर सुन्दर चित्र बना कर रंगवा दिया और एक गुलज़ार बाजार में बेचने के लिए पहुंच गया। एक व्यक्ति ने वह कपड़ा 500 रु में खरीदा और उसे 100 रु ईनाम भी दिया। जब बच्चा वापस आया तो उसके पिता ने फिर एक कपड़ा हाथ में दे दिया और उसे दो हज़ार रु में बेचने को कहा। इस बार बच्चे को पता था कि इस कपड़े की इतनी ज्यादा कीमत कैसे मिल सकती है । उसके शहर में मूवी की शूटिंग के लिए एक नामी कलाकार आई थीं। बच्चा उस कलाकार के पास पहुंचा और उसी कपड़े पर उनके ऑटोग्राफ ले लिए। ऑटोग्राफ लेने के बाद बच्चे ने उस

ये कहां आ गए हम

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      सूक्ति   यूं तो संदर्भित है मगर सत्य है युवक और युवतियां जिस आधुनिक मार्ग की ओर बढ़ रही है उससे यह तो कहने में कोई दोहराय नहीं कि वो मार्ग भारतीय संस्कृति के पतन का ही अनुसरण है ।                   संस्कृत की सूक्ति है- " प्राप्तेतु षोडशे वर्षे गर्दभी अप्सरा भवेत्।" अर्थात सोलहवें साल में तो गधी भी अप्सरा हो जाती है।  मेरे अप्सरावादी मित्र मुझे इस सूक्ति का अर्थ इस प्रकार समझाते हैं- "सोलह साल की हो जाने पर तो सामान्य सूरत कन्या भी अप्सरा के समान ही लावण्यमयी दिखाई देने लगती है।" इसीलिए मुझे भी मानना पड़ता है कि यौवन आ जाने पर तो सौन्दर्य स्वत: ही प्रखर हो जाता है।    कुछ अप्सराएं सोलह साल की हो जाने के बाद गधी के समान ही नासमझ भी हो जाती हैं और जीवन भर सोलह साल की बनी भी रहना चाहती हैं।  मिश्र की महारानी "क्लियोपैट्रा" जीवन भर सोलह साल की बनी रहने के लिए गधी के दूध से स्नान किया करती थी। हमारी चलचित्र बालाएं तन्वी बनी रहने के लिए चरस भर कर सिगरेट के सुट्टे ‌लगाती हैं जिससे उनके जिगर में इतनी आग हो जाती है कि वह न केवल अपने पिया से कह सकती हैं कि -&q

क्या कहते हैं सात फेरे

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हिंदू धर्म में विवाह का अपना एक महत्व है जिसमें दो अलग-अलग संस्कृतियों का मेल होता है विवाह में सात फेरों की प्रथा है प्रत्येक फेरा अपने में एक अलग वचन संजोए रहता है जिसका पालन पति पत्नी को करना होता है। प्रस्तुत है सात फेरों के अर्थ :-   पहला वचन तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।। यह पहला वचन अथवा शर्त होती है जो कन्या वर से मांगती है। इसमें वह कहती है कि यदि आप कभी किसी तीर्थयात्रा पर जाएं तो मुझे भी अपने साथ लेकर चलेंगें, व्रत-उपवास या फिर अन्य धार्मिक कार्य करें तो उसमें मेरी भी सहभागिता हो और जिस प्रकार आज आप मुझे अपने वाम अंग बैठा रहे हैं उस दिन भी आपके वाम अंग मुझे स्थान मिले। यदि यह आपको स्वीकार है तो मैं आपेक बांयी और आने को तैयार हूं। कुल मिलाकर इसका अर्थ यही है कि किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य में पति के साथ पत्नि का होना भी जरुरी है।  दूसरा वचन पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:। वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम ।। कन्या वर से अपने दूसरे वचन में कहती है कि जैसे