तुलसी मस्तक तब नवै जब धनुष बाण हो हाथ
भगवान भक्तो को और भक्त भगवान को कब असमंजस की स्थिति में डॉल दे कुछ पता नहीं ऐसी ही एक कथा आपके सामने प्रस्तुत हे:-
भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी एक बार एक मंदिर के बाहर से जा रहे थे तभी पुजारीजी ने व्यंग्य से कहा गोस्वामी जी भगवान से बड़ा कोई काम आ गया क्या दर्शन तक का समय नही बाहर ही बाहर से जा रहे हैं।
तुलसीदास जी ने कहा गलती हो गयी और जय श्री राम का जयकारा लगाकर बाहर ही प्रणाम करके चलने लगे।
पुजारी जी फिर बोल उठे "तनिक दर्शन तो कर लो"।
तुलसीदास जी ने पादुकाये खोली पैर धोये और गर्भग्रह में आये। कभी भगवान को वस्त्र पहनाये जा रहे थे पुजारीजी बोले प्रणाम कर लीजिए।
"अभी नहीं " तुलसीदास जी बोले।
पुजारी ने वस्त्र पहनाये फिर बोले "अब कर लीजिए"।
तुलसीदास जी फिर बोले "अभी नहीं "।
तिलक छाप किये गये भोग नैवेद्य चढाये फिर भी तुलसीदास जी नही झुके।
पुजारी जी से न रहा गये वे बोले क्या हुआ आप बड़े विचित्र मनुष्य है भगवान सामने है फिर भी सर नहीं झुका रहे है ये कैसी भक्ति।
तुलसीदास जी ने बडा ही सुन्दर उत्तर दिया।
कहां कहो छवि आजु कि भले बिराजऊ नाथ,
तुलसी मस्तक तब नवे जब धनुष बाण हो हाथ।
अर्थात इस छवि का क्या वर्णन करू बहुत ही मनभावन है स्वयं दीनबंधु दीनानाथ विराजमान है मगर तुलसीदास का मस्तक तो तब ही झुकेगा जब सामने धनुष बाण हाथ में लिए भगवान रामचंद्र विराजमान हो।
!! जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखि !!
तुलसीदास जी ने भगवान राम के धनुष बाण से सुसज्जित रूप का ध्यान पूजा की है इसलिए उनको बिना धनुष बाण के भगवान अधूरे लगे।
!! जय श्री राम !!
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