
चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं । ************ जब चाँद का धीरज छूट गया । वह रघुनन्दन से रूठ गया । बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है । स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है । तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है । हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है । सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है । चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है । जिस वक़्त याद में सीता की , तुम चुपके - चुपके रोते थे । उस वक़्त तुम्हारे संग में बस , हम ही जागते होते थे । संजीवनी लाऊंगा , लखन को बचाऊंगा ,. हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त मगर अपनी चांदनी बिखरा कर, मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त । तुमने हनुमान को गले से लगाया । मगर हमारा कहीं नाम भी न आया । रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था । तुम्हारी व...